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वीडियो जानकारी: 10.08.24, प्रश्नोत्तरी सत्र , ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ क्या कोई भी चीज़ हमारी ज़िंदगी में अकेले आती है?
~ गीता किसके लिए है?
~ आज के युग में कृष्ण हमारे सामने कैसे आएंगे?
~ अध्यात्म आपको कौन से दृष्टि देता है?
~ शास्त्रों की ज़रूरत किसको नहीं है?
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 7
जा मुझसे दूर जितना जाएगा
टकराएगा चिल्लाएगा गिर जाएगा
मत बचा मिटा दे प्यारे अंधेरे को
तू लाख बचा वो बच नहीं पाएगा
~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ
अर्थ:
हे भारत! हे भरतवंशी, जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का अभ्युदय होता है, अधर्म सिर चढ़कर बोलता है तब-तब मैं उस धारा से अपने आप को प्रकट करता हूँ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।४.८।।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 8
गिरना तेरा बहुत हुआ,
रुक जा अब रुक जा
कर झूठ पर वार प्रचंड,
सच समक्ष है झुक जा
तू तू नहीं तू मैं हो,
तो मेरी ताकत तेरी है
तू मैं मैं तू हूं तू दहाड़,
नहीं दूरी है नहीं देरी है
~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ
अर्थ:
साधुजनों की रक्षा के लिए और जो दुष्कृत्य करते हैं लोग, माने जो अधर्मी-पापी लोग हैं उनके विनाश के लिए और धर्म की संस्थापना के उद्देश्य से हर युग में ‘सम्भवामि’, हर युग में 'भवित' होता हूँ, प्रकट, प्रस्तुत, अवतरित होता हूँ।
संगीत: मिलिंद दाते
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